श्वास
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हम सिर्फ इनता ही जानते हैं कि
श्वास अंदर लेने से;
ऑक्सीजन भीतर गई और कार्बन डाईऑक्साइड बाहर निकल आई, लेकिन भीतर वह क्या-क्या सही या गलत करके आ जाती है,
इसका हमें कम ही ज्ञान हो पाता है।
जरा यह सोचें कि जो वायु (ऑक्सीजन) हमने भीतर ली, वह कितनी शुद्ध थी? शुद्ध थी तो अच्छी बात है, वह हमारे भीतरी अंगों को भी शुद्ध और पुष्ट करके सारे जहरीले पदार्थ को बाहर निकालने की प्रक्रिया को सही कर के आ जाएगी। और यदि नहीं तो इसका हमारे शरीर पर बुरा प्रभाव भी पड़ सकता है।
एक बात औऱ, यदि हम जोर से या बल लगा कर साँस लेते हैं तो तेज प्रवाह से बैक्टीरिया नष्ट होने लगते हैं। कोशिकाओं की रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ जाती है। बोन मेरो में नए रक्त का निर्माण होने लगता है। आँतों में जमा मल विसर्जित होने लगता है। मस्तिष्क में जागृति लौट आती है जिससे स्मरण शक्ति दुरुस्त हो जाती है।
न्यूरॉन की सक्रियता से सोचने समझने की क्षमता पुनः जिंदा हो जाती है। फेफड़ों में भरी-भरी हवा से आत्मविश्वास लौट आता है।
सोचें जब जंगल में हवा का एक तेज झोंका आता है तो जंगल का रोम-रोम जागृत होकर सजग हो जाता है। ठीक वैसा ही कुछ हमारे शरीर के भीतर भी होता है।
"और यह सब
प्राणायाम से ही
सहज साध्य है “
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Sunnyy punder
8450990421
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