Practice Yoga - Stay Healthy

 *योग अपनाइये - स्वस्थ रहिए*

स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन विकास करता है। पहला सुख निरोगी काया भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है योगः कर्मसु कौशलम ! कार्य में कुशलता योग है। 'समत्वं योग उच्चते' अर्थात समता योग है। योग का सतत अभ्यास हमारे व्यक्तित्व में शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक समता लाता है। एक पुरानी चीनी कहावत है कि रीढ़ को लचीली रखो बुढ़ापा आपसे दूर रहेगा। भारत के ऋषियों तथा मनीषियों ने घोषणा की है कि योग सभी प्रकार के दुःखों का नाश कर सकता है। योग के अभ्यास से मनुष्य कम समय में अधिक कार्य सुचारू व व्यवस्थित ढंग से कर सकता है तथा तनाव से मुक्त रह सकता है। अच्छा स्वास्थ्य सबसे बड़ी सम्पत्ति है। अच्छे स्वास्थ्य के बिना कोई भी जीवन को किसी पहलू में सफलता की आशा नहीं कर सकता। योग के व्यायाम से शरीर की सभी मांशपेशियों, स्नायु-तंत्र एवं आंतरिक अंगों का समुचित विकास होता है तथा कोई दुष्परिणाम नहीं होता।

योग केवल रोग ठीक करने हेतु नहीं, बल्कि जीवन निवृत्ति का मार्ग है। योग बौद्धिक विकास करता है अज्ञान के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश की ओर ले चलता है। योग से स्मरण शक्ति तथा चिंतन-शक्ति बढ़ती है। चिंतन से विचारों की शुद्धि होती है। विचार शुद्ध होने से व्यवहार शुद्ध होता है और शुद्ध व्यवहार से चरित्र-निर्माण होता है। चरित्रवान व्यक्ति में निडरता, सत्य, प्रेम, मानवता, दया, सहिष्णुता, न्यायप्रियता, आत्मनिर्भरता आदि गुणों का विकास होता है, जिससे व्यक्ति में निखार आता है। चरित्रवान व्यक्ति बलवान होता है। शक्ति, जो मानसिक तथा शारीरिक स्तर पर होती है। योग से एकाग्रता तथा एकाग्रता से स्मरण शक्ति बढ़ती है।

 *योग शक्ति है, योग भक्ति है, योग करे चरित्र निर्माण।...योग साधना, योग जागृति, योग करे तन-मन बलवान ।।* 


योगासन के अभ्यास के बाद दस मिनट तक प्राणायम करें। जैसे शीतली, शीतकारी, भस्त्रिका, सुखपूर्वक तथा भ्रामरी तत्पश्चात कुछ देर पदमासन या मुखासन में शांतचित बैठकर ध्यान करें। महर्षि पतंजली ने योग को मन को जीतने का साधन बताया है। संतों एवं योगियों ने कहा है कि हम सतत अभ्यास से जीवन में आनन्द एवं सामंजस्य प्राप्त कर सकते हैं। अनावश्यक चिंता छोड़ें, सादा जीवन जीयें। सकारात्मक विचारधारा रखें। शक्ति का संचय करें। अपना कर्तव्य पूरा करके फल परमात्मा पर छोड़ दें। आपका विकास निश्चित है।

 *सर्वे भवन्तु सुखिनाः सर्वे सन्तु निरामयाः* 

 *सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग- भवेत ।* 

स्वामी विवेकानन्द ने कहा है कि शक्ति जीवन है तथा दुर्बलता मृत्यु है । अतः आइये, शक्ति का संचय करें तथा हर प्रकार की दुर्बलता को छोड़ें। अपनी समृद्ध संस्कृति की अमूल्य धरोहर (योग के ज्ञान) को अपने दैनिक जीवन में अपनाकर स्वस्थ बनें।

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